नौ बरसों से जूझ रही है नज़्म,
अकेली, अँधेरी रात में … चुपचाप
जैसे सगरेट लड़ा करती है तेज़ हवाओं से ॥
दसवें बरस जब निखरेगी तो…
गीत बनेगी गोरी का ....
फिर लाल पहन कर आएगी
और उसके ही पाँव में ये पाजेब सजेगी।
अकेली, अँधेरी रात में … चुपचाप
जैसे सगरेट लड़ा करती है तेज़ हवाओं से ॥
दसवें बरस जब निखरेगी तो…
गीत बनेगी गोरी का ....
फिर लाल पहन कर आएगी
और उसके ही पाँव में ये पाजेब सजेगी।
2 comments:
Kya baat hai dost (y)
Superb jbl :)
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