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Friday, July 17, 2015

खिड़की

वक़्त की खिड़की पर कुछ लम्हें सुखाए हैं ……
जो कल रात तुम्हारे आंसुओं में गीले हो गए थे

हवा उड़ा ना ले जाए ; बस यही दर रहता है …
की ना तुम्हारे प्यार का वज़न है उनपर....
और ना ही तुम्हारी डाँट का डर ॥  

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