यह विराम की स्थिति नरम हो चली विगत अग्नि ज्वाला,
आज रात बस इतना ही आखिरी मधु अंतिम प्याला,
अपने लालायित अधरों से चूम उठा काली हाला,
मधुवन के सबसे सुरभित कुसुमों से सज्जित ये मधुशाला ||1||
कर रही आज अभिवादन है जाओ अब सूरज निकल रहा,
था झूम रहा कुछ क्षण पहले वो पीने वाला संभल रहा
है जाग रहा है जगा रहा पीनेवालों को यह कहकर
आ गया काल निर्धारित चलें आओ अंतिम प्याला पीकर ||2||
लाल रक्त से दीप्त नेत्र कुछ के ज्यादा पी लेने से,
और लाल कुछ की आँखें है विरह झेलने, रोने से,
फिर भी प्रदीप्त सब नेत्र लिए एक नयी ज्योति कल के हेतु,
एक नयी सुबह एक नयी दिशा में बढ़ें पाँव फल के हेतु ||3||
सारा सुख सब आनंद ह्रदय को बहुत शांति पहुंचाता है ,
और मेघ सम चढ़ता है तब नेत्रों पे छा जाता है,
और बरस पड़ता है फिर वो नर की कोमल आँखों से ,
ज्यों गिरते पंख परम आह्लादित एक मयूर की पांखों से ||4||
कुछ उसी तरह साड़ी रजनी आमोद मनाने पीने से ,
उस पर दिनकर का अकस्मात ले उषा सामने आने से,
मूर्च्छा त्यागी सबने कैसे पीने वाले सब दंग हुए,
क्या हुआ, हुआ कैसे सपने बच गए मध्य में भंग हुए ??5??
यह अंतिम पात्र गरल का है यों इसे नहीं जाने देना,
मत बीच स्वयं के और मधु के तुम कुछ भी आने देना,
पूरा आनंद उठाना रात का अंतिम पहर है बीत चला,
नर की भारी इच्छाओं का विश्वास भुवन को जीत चला ||6||
लो आ गयी सुबह चले सब मतवाले अपनी धुन में,
कुछ यादें लिए रात की, कुछ सपने लेकर कल के मन में,
हैं अरुण नेत्र सबके किन्तु मुख पर श्रान्ति का नाम नहीं,
अधरों पे सबके गीत यही "जय मिले बिना विश्राम नहीं " ||7||
This was composed during the final days of my high school and tries to compare the moods of a school leaving kid with a man who is about to leave the bar where he has spent the entire night being intoxicated.
Sunday, May 10, 2009
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10 comments:
nice poem...its good to see u write in hindi after such a long span.
It still gives the same fresh feel as it gave at the time it was composed...cause it makes us remember those golden schooldays..
n i should say "ITS AWESOME"
freshness ka to pata nahi par pehle para ko chhod kar bahut jaada intense aur invigorating hai.
aur ek successful attempt hai, bahut kam jagah pe thora off hai. baaki idea bahut achchha hai aur writing to prashansaneeya hai
8 years have passed since I read this one. I may not remember the verses, but I remember the goosebumps they gave then, and once again today. Amazing work it is , one that I will revisit again and again to revisit our own glorious times of creativity and inspiration!
बहुत खुब प्रणव
A composition with epic ambitions and epic results. Wonderful!
A composition with epic ambitions and epic results. Wonderful!
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Mind= blown!
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